歌詞
रात आँगन में उतर आती है धीरे धीरे
रात के भेद बहुत
रंग बहुत
ढंग बहुत
कोई सो जाए... तो
चुपचाप ये सो जाती है
कोई रोता है तो रोती है ये हमदम बन कर
दर्द के क़िस्से सुनाएँ तो ये सुन लेती है
कोई तड़पे जो मोहब्बत में... तो
अपनी बाँहों में ये नरमी से समो लेती है
कोई ख़्वाबों की हसीं दुनिया में रहना चाहे
उसको ये सैर कराती है किसी जन्नत की
कुछ तो ऐसे हैं
जो ख़ुश रहते हैं तन्हाई में
किसी अनचाही रिफ़ाक़त से चुराकर कुछ पल
ख़ामोशी ओढ़ के यादों का मज़ा लेते हैं
जब पड़े ग़म... तो
रोते ही गुज़र जाती है रात
दाग़ कुछ ऐसे... कि
धोते ही गुज़र जाती है रात
आशिकों से कोई पूछे
जो शब-ए-वस्ल की बात
रोएँ-धोएँगे... कि
जल्दी से गुज़र जाती है रात
चाँदनी रात, अमावस हो या बरसात की रात
रात तो रात है
आख़िर को गुज़र जाती है !!