### महाभारत - भाग 1: शकुन्तला और महाराज दुष्यंत की कहानी (दृश्य 1: जंगल में महाराज दुष्यंत का आगमन) (महाराज दुष्यंत शिकार के लिए जंगल में आते हैं और कण्व ऋषि के आश्रम में पहुँचते हैं। वहाँ उन्हें शकुन्तला मिलती हैं।) दुष्यंत (आश्चर्यचकित होकर): "वाह! यह क्या जगह है? और तुम कौन हो, इतनी सुंदर लड़की?" शकुन्तला (मुस्कुराकर): "नमस्ते महाराज! मैं शकुन्तला हूँ। मैं कण्व ऋषि की बेटी हूँ। आप यहाँ कैसे आए?" दुष्यंत (हैरान होकर): "तुम इतनी सुंदर हो, और तुम्हारे माता-पिता कौन हैं?" शकुन्तला: "मेरे माता-पिता मेनका और विश्वामित्र हैं। मेरी माता ने मुझे बचपन में जंगल में छोड़ दिया था, जहां एक पक्षी ने मेरी रक्षा की। फिर कण्व ऋषि ने मुझे अपने घर लिया और पाला। वह मेरे पिता के समान हैं।" दुष्यंत (चौंकते हुए): "वाह! तो तुम कण्व ऋषि की बेटी हो और उन्होंने तुम्हें अपने घर में रखा। तुम सचमुच एक अद्भुत कन्या हो!" शकुन्तला: "धन्यवाद महाराज! कण्व ऋषि ने मुझे हमेशा धर्म और सत्य का पालन करना सिखाया।" दुष्यंत (सोचते हुए): "शकुन्तला, तुम बहुत प्यारी हो। क्या तुम मेरे साथ विवाह करना चाहोगी?" शकुन्तला (मुस्कुराते हुए): "महाराज, मुझे आप पर विश्वास है। अगर आप मुझे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके साथ विवाह करने के लिए तैयार हूं।" दुष्यंत (खुश होकर): "तो फिर हम गंधर्व विवाह करेंगे। अब हम दोनों का साथ होगा, और कोई भी हमें अलग नहीं कर सकेगा।" (समाप्त होते ही समय चक्र का दृश्य आता है) समय (नाटक के अंत में): "यह विवाह भी समय के चक्र का हिस्सा है। जैसे सूरज हर रोज उगता और अस्त होता है, वैसे ही घटनाएँ भी समय के चक्र में घूमती रहती हैं। जो हुआ, वह फिर से होगा, और जो होगा, वह पहले हो चुका है।" --- (दृश्य 2: दुर्वासा ऋषि का शाप) (शकुन्तला अपने आश्रम में अकेली बैठी होती है, तभी दुर्वासा ऋषि आते हैं।) दुर्वासा ऋषि (गुस्से में): "तुमने मेरे स्वागत का ध्यान नहीं रखा! यह बहुत बुरा हुआ। मैं तुम्हें शाप देता हूँ, तुम जिसे सोच रही हो, वह तुम्हें भूल जाएगा।" शकुन्तला (द्रवित होकर): "ऋषि, मुझे माफ़ कर दीजिए! मैंने जानबूझकर आपका अपमान नहीं किया। कृपया मुझे क्षमा करें।" दुर्वासा ऋषि (द्रवित होकर): "ठीक है, मैं तुम्हें माफ़ करता हूँ। लेकिन अगर तुम्हारे पास कोई चिन्ह हो, तो वह उसे देखेगा और उसे तुम्हारी याद आ जाएगी।" (समाप्त होते ही समय चक्र का दृश्य फिर से आता है) समय (नाटक के अंत में): "देखो, समय के इस चक्र में हर एक घटना अपने स्थान पर आती है। हर शाप और वरदान भी समय की धार में बहते हैं, और यही चक्र चलता रहता है।" --- समाप्त!