Dalszöveg
जंगल में रहता एक बंदर,
नाम था उसका मोटो।
कूद-कूद कर पेड़ों पर चढ़ता,
सब कहते — “क्या है फोटो!”
सुबह-सुबह वो सूरज से बोलता,
“भैया जरा मुस्कुराना।”
फिर झट से तालाब में जाकर
अपनी शक्ल दिखाना।
पेड़ की शाख पर झूले झूले,
मन जैसे हो चकोर।
हवा कहती — “धीरे मोटो!”
पर मोटो बोले — “और, और!”
एक दिन उसने सोचा–
“क्यों ना मज़ा दिखाऊँ?”
सब फलों को एक जगह रखकर,
नाच-नाचकर गाऊँ।
केले, अमरूद, जामुन लेकर,
उसने ठुमके मारे।
हिरन बोला — “भाई ये तो
पूरा रॉक-स्टार हमारे!”
तभी तोता बोला हंसकर,
“मोटो, तुम बड़े कलाकार।
मंच बनाओ, शो दिखाओ,
हम सब होंगे तैयार!”
बंदर ने फिर क्या सोचा,
तुरंत शुरू कर दी प्रैक्टिस।
कलाबाज़ी, ताल, सुर-लय,
सबमें कर ली मास्टर प्रैक्टिस।
शाम हुई तो जंगल सारा
मोटो को देखने आया।
लालटेन की रोशनी में
उसने शो शुरू कराया।
कभी पलटी, कभी छलांग,
कभी हँसकर आँख झपकाता।
हाथी बोला — “वाह रे मोटो!
दिल तुमने जीत ही जाता।”
आख़िर में मोटो ने बोला—
“बस, आज का शो हुआ पूरा!”
सब जानवर ताली बजाकर
कहते — “तू तो निकला गुरूरा!”
मुस्काकर बंदर बोला—
“मस्ती ही असली जीवन है।”
जंगल का हर कोना बोला—
“मोटो— तू जीता जीवन है!”